उत्तराखंड में पर्यटन गतिविधियों को बढ़ावा देने पर सरकार जोर दे रही है. जिसके तहत तमाम शहरों को हेली सेवाओं से भी जोड़ रही है. ताकि, ज्यादा से ज्यादा पर्यटक आ सकें. इसी कड़ी में देहरादून से नैनीताल, बागेश्वर और मसूरी के साथ ही हल्द्वानी से बागेश्वर के लिए हेली सेवा शुरू हो गई है. जिसका शुभारंभ सीएम पुष्कर धामी ने हरी झंडी दिखाकर किया.
मुख्यमंत्री पुष्कर धामी कहा कि ‘उड़ान’ योजना के तहत शुरू की जा रही इन चार हेली सेवाओं से राज्य में पर्यटन और आर्थिक विकास को गति मिलेगी. बेहतर कनेक्टिविटी से स्थानीय लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव आएंगे. बागेश्वर, नैनीताल और मसूरी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण स्थल हैं. इन क्षेत्रों की प्राकृतिक सुंदरता, शांत वादियां, हरे-भरे पहाड़, ऐतिहासिक मंदिर और समृद्ध संस्कृति देश और दुनिया भर के पर्यटकों को आकर्षित करती हैं.
नैनीताल अपनी मनोरम झीलों, नयना देवी शक्तिपीठ और कैंची धाम जैसे प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है. सरयू और गोमती नदी के पावन संगम पर स्थित बागेश्वर का क्षेत्र पवित्र बागनाथ मंदिर और प्रसिद्ध उत्तरायणी मेले के लिए जाना जाता है. हेली सेवा की शुरुआत से अब इन क्षेत्रों की प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहरों का आनंद लेने वाले पर्यटक यहां और भी आसानी से पहुंच सकेंगे.
सीएम धामी ने कहा कि देहरादून से इन स्थानों पर पहुंचने में सड़क मार्ग से लगभग 8 से 10 घंटे लगते हैं. अब हेली सेवा शुरू होने से यह यात्रा करीब 1 घंटे की हो जाएगी. इमरजेंसी की स्थिति में इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को काफी मदद मिलेगी. उन्होंने कहा कि पीएम मोदी ने आम आदमी को भी हवाई यात्रा करने में सक्षम बनाने के उद्देश्य से उड़ान योजना शुरू की थी.
इस योजना ने उत्तराखंड में हवाई संपर्क को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. जिसके अंतर्गत राज्य के कई हिस्सों में हवाई पट्टियों और हेलीपोर्ट्स का विकास किया गया है. उत्तराखंड में 18 हेलीपोर्ट्स से हेली सेवाओं के संचालन की दिशा में कार्य किया जा रहा है, जिनमें से अब तक 12 हेलीपोर्ट्स पर सेवाएं शुरू की जा चुकी हैं.
इन हेली सेवाओं से अब तक गौचर, श्रीनगर, चिन्यालीसौड़, हल्द्वानी, मुनस्यारी, पिथौरागढ़, पंतनगर, चंपावत और अल्मोड़ा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को जोड़ा जा चुका है. उन्होंने कहा कि हेली सेवाएं राज्य में न केवल आवागमन को सुगम बनाएंगी. बल्कि, दैवीय आपदा के समय दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्रों के लिए भी एक जीवन रेखा के रूप में भी कार्य करेंगी.
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