आप लोगों ने वह कहावत तो सुनी ही होगी कि ‘अब पछतावत होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत’।
ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है उत्तराखंड में ।
जी हां जब मानसून का पूरा सीजन बीत गया, तब उत्तराखंड के मुख्य सचिव महोदय को वर्षा जल संरक्षण करने की याद आई, और इसके लिए सचिवालय में हाईपावर की बैठक बुलाई ।
अब जरा आप भी सोचिए अगर यह जो बैठक मुख्य सचिव महोदय ने मानसून बीतने के बाद बुलाई, अगर यही बैठक अप्रैल माह में मानसून से पहले बुलाए होती तो शायद प्लान का कुछ हो भी सकता था।
लेकिन उत्तराखंड जनाब यहां छोटे राज्य में बड़ी-बड़ी घटनाऐं होती रहती हैं ।
चलो खेर फिर भी गनीमत रहेगी अगर अगले मानसून से पहले इस योजना को धरातल पर उतार दिया जाता है तो।
चलिए एक नजर डालते हैं कि आखिर इस बैठक में हुआ क्या था।
मुख्य सचिव डॉ. एस.एस. संधु ने आज सचिवालय में वर्षा जल संग्रहण के सम्बन्ध में बैठक लेकर कहा कि प्रदेश में वर्षाकाल में अत्यधिक वर्षा होती है, परन्तु बाकी समय पर पानी की समस्या रहती है। उन्होंने कहा कि रिवर एंड स्प्रिंग रिजूवनेशन के लिए बनाई जा रही अथॉरिटी अथवा एजेंसी के उद्देश्यों में अधिकतम संख्या में चेकडैम तैयार किए जाने को शामिल किया जाए। मुख्य सचिव ने कहा कि वर्षा जल को चेकडैम आदि के माध्यम से रोक कर जल संग्रहण किया जा सकता है, जिससे वर्षभर पानी की उपलब्धता बनी रहेगी। उन्होंने कहा कि जल स्रोत से उत्तराखण्ड की सीमा तक सभी नदियों का मास्टर प्लान तैयार किया जाए।मुख्य सचिव ने कहा कि राज्य जल संरक्षण की योजना तैयार की जाए, जिस पर चरणबद्ध तरीके से कार्य किया जाएगा। पर्वतीय क्षेत्रों में पेयजल की कमी को दूर करने में यह प्रदेश की 70 प्रतिशत से अधिक वन भूमि महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इससे प्रदेश के अधिकतम भूभाग के जल स्रोत रिचार्ज होंगे। इस अवसर पर अपर मुख्य सचिव श्री आनन्द बर्द्धन, प्रमुख सचिव श्री आर. के. सुधांशु, सचिव श्री अरविंद सिंह ह्यांकी एवं जलागम प्रबंधन से श्रीमती नीना ग्रेवाल सहित अन्य अधिकारी उपस्थित थे।
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