पहाड़ की वो बेटी जिसने राम जन्मभूमि आन्दोलन में निभाई थी अहम भूमिका
22 जनवरी को अयोध्या में 500 साल बाद भव्य राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है। वहीँ उत्तराखंड भी इन दिनों राममय हो रखा है, और हो भी क्यों न इतने वर्षों बाद राम लला मंदिर में विराजमान जों हो रहे हैं
जब राम मंदिर आंदोलन की बात होती है तो बहुत से ऐसे चेहरे याद आते हैं जिन्होंने प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से राम मंदिर आंदोलन में अपनी भूमिका निभाई है। लेकिन क्या आपको पता है है कि इस आन्दोलन में पहाड़ की एक बेटी ने भी अहम् भूमिका निभाई है, जी हाँ में बात कर रहा हूँ पहाड़ की बेटी शकुंतला बिष्ट की
उत्तराखंड की बेटी शकुंतला बिष्ट भी उनमें से एक थी, जिन्होंने अपने पति केके नायर के साथ मिलकर न सिर्फ राम मंदिर आंदोलन में भूमिका निभाई बल्कि बाद में हिंदुत्व की लहर पर सवार होकर संसद भी पहुंची थी।
आजादी के बाद 1949 में पहली बार रामलला का मामला कोर्ट में पहुंचा था। तब बाबरी ढांचे वाले परिसर में रामलला की मूर्तियां रख दी गई थी। राम जन्मभूमि आंदोलन की ये घटना करोड़ों हिंदुओं के लिए एक टर्निंग प्वाइंट थी। उस समय फैजाबाद के कलेक्टर के. के नायर थे,, जिन्होंने विवादित परिसर में रामलला की मूर्तियां रखने और उसकी पूजा जारी रखने में सहयोग किया। केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने उन पर दबाव बनाया कि वो विवादित परिसर से मूर्तियां हटवाएं, लेकिन उन्होंने इससे साफ इनकार कर दिया। इस पर सरकार ने उन्हें निलंबित भी किया, लेकिन बाद में हाईकोर्ट ने उनका निलंबन निरस्त कर दिया था। साल 1952 में उन्होंने आईसीएस की नौकरी से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली।
लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि नायर ने जब श्रीराम के लिए इतना बड़ा कदम उठाया तब उनके पीछे उनकी पत्नी की प्रेरणा थी। उकी पत्नी शकुंतला बिष्ट थी जो उत्तराखंड से ताल्लुक रखती थी। मसूरी में पढ़ाई के दौरान वे नायर के संपर्क में आई। और दोनों ने शादी कर ली । नायर के जीवन पर पत्नी शकुंतला की धर्मपरायणता का गहरा असर था। 1949 की घटना में भी नायर पर इसका असर दिखा था। यही वजह है कि नायर ने राम नाम की खातिर सरकारी आदेशों तक को मानने से भी इनकार कर दिया , अत्यंत स्वाभिमानी के.के. नायर ने 1952 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकालत की प्रैक्टिस शुरू की। नायर अत्यंत धर्म परायण व्यक्ति थे। शायद यही कारण था कि आज जिस राम मंदिर के लोकार्पण के स्वप्न को सनातन धर्मावलंबी साकार होते देख रहे हैं, उसकी नींव में के.के. नायर और उनकी पत्नी शकुन्तला बिष्ट नायर का बहुत बड़ा योगदान है। सेवानिवृत्ति के बाद नायर दंपत्ति ने देवीपाटन और फैजाबाद को ही अपना कर्मक्षेत्र बनाया और वहीं स्थाई निवास भी बना दिया।
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इस दंपत्ति के राम मंदिर की आधारशिला बनने का ही नतीजा था कि शकुंतला नायर 1952 में गोंडा वेस्ट सीट से लोकसभा के चुनाव में हिंदू महासभा के टिकट पर भारी बहुमत से विजयी हुई। वह 1962 से 1967 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा की सदस्य रहीं और 1967 में जनसंघ के उम्मीदवार के रूप में उत्तर प्रदेश के कैसरगंज क्षेत्र से लोकसभा के लिए चुनी गईं। वे कुल तीन बार लोकसभा के लिए चुनी गई। लोगों में इस दंपती के प्रति अगाध आस्था इस कदर थी कि वे यहां प्रखर हिंदुत्व का प्रतीक बन गए। लोगों की श्रद्धा का आलम तो देखिए, 1967 के लोकसभा चुनाव में जनता ने उनके ड्राइवर को भी निर्वाचित कर दिया।
शकुन्तला बिष्ट नैयर आज इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन भव्य राम मंदिर का सपना साकार होते देख उनकी आत्मा भी तृप्त हो रही होगी।
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