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भाकपा, माकपा, भाकपा(माले) करेंगी इंडिया गठबंधन के प्रत्याशियों का समर्थन 

भाकपा, माकपा, भाकपा(माले) करेंगी इंडिया गठबंधन के प्रत्याशियों का समर्थन

बुधवार 3 अप्रैल को उत्तरांचल प्रेस क्लब में भाकपा, माकपा, भाकपा(माले) ने पत्रकार वार्ता कर कहा कि तीनों पार्टियां उत्तराखंड में पूरी ताकत के साथ इंडिया गठबंधन के प्रत्याशियों का समर्थन करेंगी|

भाकपा(माले) के प्रदेश सचिव इंद्रेश मैखुरी ने कहा कि एक दशक से सत्तासीन नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार, देश के लोकतंत्र और संविधान के लिए गंभीर खतरा बन गयी है, इसलिए तमाम लोकतंत्र पसंद और संविधान में यकीन रखने वाले लोगों से वामपंथी पार्टियां अपील कर रही हैं ,कि वोट की ताकत से इस सरकार को उखाड़ फेंकें|

भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के नाम पर सत्ता में आई मोदी सरकार, आज सबसे बड़ी भ्रष्टाचारी और अवैध वसूली करने वाली सरकार सिद्ध हुई है,इलेक्टोरल बॉन्ड के लेनदेन का जो आंकड़ा सामने आया है, उससे साफ है कि इसकी सबसे बड़ी लाभार्थी भाजपा रही है| यह भी साफ है कि पहले कंपनियों पर एजेंसियां छापा मारती थी और फिर वो कंपनियाँ करोड़ों के इलेक्टोरल बॉन्ड भाजपा को देती थी.

दस साल पहले मंहगाई, बेरोजगारी से लेकर तमाम सवालों का जवाब मोदी सरकार को बताया गया था, एक दशक बाद देश देख रहा है कि अच्छे दिन इस देश के लिए तबाही और बरबादी के दिन सिद्ध हुए हैं.

हर साल दो करोड़ बेरोजगारों को रोजगार देने का वायदा झूठा सिद्ध हुआ. प्रधानमंत्री जी की बहुचर्चित पकौड़ा रोजगार योजना भी मंहगाई और बुलडोजर की भेंट चढ़ गयी. कुछ साल पहले एनएसएसओ की रिपोर्ट में बताया गया था कि 45 सालों में सर्वाधिक बेरोजगारी मोदी के काल में है. हाल में आई अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन(आईएलओ) की रिपोर्ट बता रही है कि बेरोजगारों में 83 प्रतिशत हिस्सा युवाओं का है. मोदी सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी.अनंथा नागेश्वरन ने कह दिया है ,कि सरकार बेरोजगारी जैसे सब सवालों का हल नहीं कर सकती !

 

1.अग्निवीर-अग्निपथ जैसी योजना लाकर न केवल फौज को अस्थायी कर दिया गया है बल्कि यह अन्य को भी संदेश है कि जब सबसे बड़ी नौकरी अस्थायी हो सकती है तो फिर बाकी नौकरियाँ स्थायी कैसे होंगी ! पुरानी पेंशन स्कीम (ओपीएस) की मांग कर रहे कर्मचारियों को भी परोक्ष रूप से बता दिया गया है कि सेना में पेंशन खत्म तो उन्हें पेंशन कैसे मिलेगी ? कुल मिलाकर यह स्थायी नौकरियों के खात्मे और देश की सुरक्षा से खिलवाड़ की योजना है.

 

2. एमएसपी और फसलों का लागत मूल्य को लेकर संघर्ष कर रहे किसानों की राह में कीलें बिछाई गयी, आँसू गैस और गोलियां चलायी गयी और उन्हें आतंकवादी और खालिस्तानी तक कहा गया. लंबे संघर्षों से हासिल मजदूरों के 44 श्रम क़ानूनों को खत्म करके चार श्रम कोड (लेबर कोड) लाकर मजदूरों को पूंजीपतियों का बंधुआ बनाने का इंतजाम कर दिया गया है.

 

3. आशा-आंगनबाड़ी-भोजनमाता जैसे स्कीम वर्कर्स के लिए न न्यूनतम वेतन है,ना सरकारी कर्मचारी का दर्जा.

 

4.महिला सुरक्षा की बड़ी-बड़ी बातें हुई, बेटी बचाओ का नारा भी दिया गया, लेकिन इस एक दशक में महिलाएं सर्वाधिक हमलों और हिंसा की शिकार हुई. कठुआ, उन्नाव, हाथरस से लेकर उत्तराखंड में अंकिता भण्डारी के प्रकरण तक इस बात के उदाहरण हैं कि भाजपा हमेशा बेटियों के उत्पीड़कों के साथ खड़ी रही है.

 

5.अंकिता भण्डारी केस के वीआईपी का तो अब तक कोई पता नहीं है और सरकार इस मामले में मुंह खोलने को तैयार नहीं है.

 

6.उत्तराखंड में डबल इंजन,डबल तबाही का सबब बना. नौकरियों की लूट, जल-जंगल-जमीन जैसे संसाधनों की लूट और जीवन की लूट ही बीते सात वर्षों में उत्तराखंड के हिस्से आई है. स्कूल बंद हो रहे हैं और सरकारी अस्पताल सिर्फ रेफरल सेंटर बने हुए हैं.

 

7.धर्म के नाम पर उन्माद और उत्पात करने वालों को सरकारी संरक्षण हासिल है. दलित उत्पीड़न की घटनाएँ निरंतर बढ़ी हैं. चक्की छूने, कुर्सी पर बैठने से लेकर अंतरजातीय विवाह करने तक के लिए दलितों की हत्याओं का एक सिलसिला है. ऐसे मामलों में राज्य सरकार खामोशी बरते रहती है.

 

8. 01 सितंबर 2022 को अल्मोड़ा जिले में हुआ जगदीश हत्याकांड इसका उदाहरण है. मुख्यमंत्री ना तो पीड़ित परिवार से मिले ना ही किसी मुआवजे की घोषणा की.

 

9.अतिक्रमण हटाने के नाम पर गरीबों को उजाड़ने का खेल भाजपा राज में लगातार खेला गया. वनों और खत्तों में रहने वाले लोगों से लेकर शहरों में नजूल जमीन पर बसने वाले तथा अन्य शहरी गरीबों को निरंतर उजाड़ने की कोशिश हो रही है. ऐसे अभियानों को सांप्रदायिक रंग दे कर अल्पसंख्यकों के विरुद्ध घृणा को गरीबों को उजाड़ने के हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है.

 

10. विनाशकारी विकास के मॉडल की मार जोशीमठ बीते एक साल से अधिक समय से झेल रहा है. लंबे आंदोलन के बावजूद जोशीमठ के पुनर्वास, पुनर्निर्माण और स्थिरीकरण के लिए कोई ठोस प्रयास सरकार नहीं किया. सड़क,रेल निर्माण आदि तमाम कामों में प्रकृति पर्यावरण और परिस्थितिकी के विनाश को अंजाम दिया जा रहा है, जिससे उत्तराखंड के हिस्से सिर्फ तबाही आ रही है.

 

जाति-धर्म धनबल-बाहुबल के प्रभाव से ऊपर उठ कर जनता के जीवन के असल मसलों पर लोग वोट करे|